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2018-07-24 01:05:57
गीले काग़ज़ की तरह है ज़िंदगी मेरी कोई जलता भी नही और कोई बहता भी नही ऐसे अकेले हो गये है हम आज-कल कोई सताता भी नही,और कोई मानता भी नही