अभी इस तरफ निगाह
अभी इस तरफ निगाह ना कर,
मै गज़ल की पलक सवार लूँ,
मेरा लफज़-लफज़ हो आईना..
तुझे आईने में उतार लूँ,
मैं तमाम शब की थकी हुई,
तु तमाम शब का जगा हुआ,
जरा ठहर जा इसी मोड पर..
तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ,
अगर आसमान की नुमाइशों में..
मुझे भी इंज-ए-क्याम हो..
तो मैं मोतियों की दुकान से..
तेरा चेहरा ओर भी निखार लूँ,
कुछ अजनबी तेरे शहर के,
मेरे पास से युँ गुज़र गए..
उन्हें देख के ये तडप हुई,
उन्हें तेरा नाम ले के पुकार लूँ..