जिन बांतों पर रूठ


जिन बांतों पर रूठ जाती हो अब तुम,
पहले उन्ही पर मुस्कराया करती थी,
मेरे बदलने की गुज़ारिश क्यों करती हो,
जैसे भी हो, अच्छे हो,
तुम ही तो समझाया करती थी |


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