ठोकरें ख़ाता हूँ पर


ठोकरें ख़ाता हूँ पर “शान” से चलता हूँ।

मैं खुले आसमान के नीचे
सीना तान के चलता हूँ
मुश्किलें तो “साज़” हैं ज़िंदगी का।
“आने दो-आने दो”

उठूंगा , गिरूंगा फिर उठूंगा
और
आखिर में “जीतूंगा मैं ही”

ये ठान के चलता हूँ……. !!


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