युँही बे सबाब ना


युँही बे सबाब ना फिरा करो,
कोई शाम घर भी रहा करो..
वो गज़ल की सच्ची किताब है,
उसे छुपके-छुपके पड़ा करो..
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं..
ये महोब्बतों की कहनीयाँ..
जो सुना नहीं वो कहा करो..
जो कहा नहीं वो सुना करो..


Tags : friendship