​”कान्हा”, मुकद्दर का लिखा मैं


​”कान्हा”,

मुकद्दर का लिखा मैं मिटा नहीं सकता,,,

अपनी मर्जी की खुशियां मैं पा नहीं सकता…

पर इतना तो यकीन है मुझको मेरे गोविन्द,,,

आपकी चौखट से मैं खाली जा नही सकता…


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