*दुःख में स्वयं की
*दुःख में स्वयं की एक अंगुली*
*आंसू पोंछती है ;*
*और सुख में दसो अंगुलियाँ*
*ताली बजाती है ;*
*जब स्वयं का शरीर ही ऐसा*
*करता है तो*
*दुनिया से क्या गिला-शिकवा*
*क्या करना…!!*
*अतः*
*हँसते रहिये, हँसाते रहिये*
*और*
*सबका भला करते रहिये..!!*
*सुप्रभात*🌹🌹