Ashish: पुष्प की अभिलाषा


Ashish: पुष्प की अभिलाषा तो आपने जरूर पढ़ी होगी।
आज जूते की अभिलाषा भी पढ़िये।

“जूते👞 की अभिलाषा”
चाह नही मैं विश्व सुंदरी के, पग में पहना जाऊँ।
चाह नही दूल्हे के पग में रह, साली को ललचाऊँ।
चाह नहीं धनिकों के चरणो में, हे हरि डाला जाऊँ।
ए.सी. में कालीन पे घूमूं, और भाग्य पर इठलाऊ।
मुझे निकालो पैर खोल कर उस मुंह पर तुम देना फेंक।
जिस मुँह से भी निकल रहा हो देशद्रोह का नारा एक !!
👞👞


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